Wednesday, May 22, 2013

मैं हो रहूंगी पाकी

तेरे मयकदे में कैसे ऐसी जगह है साकी 
रोज़ करने वुज़ू को आता है हर नमाज़ी 

ऐसी जगह बता दे तेरे बुतकदे में बनवारी 
पैमाना भरा हो मय से पर मिल न पाए साकी 

ख़ाक -ए -सुपुर्द के पहले पी  लेने दो मेरे हाज़ी 
की पैमाने की मिट्टी पीती नहीं है दारु 

मिट जाएगा भरम का साया 
इस बुतकदे के डर का 
जो तूने दे दी मुझको भर भर के हर पियाली 
तू बनेगा मेरा साकी 
मैं हो रहूंगी पाक़ी 

अब तोड़ दे दीवारें मंदिर की ये पुरानी 
जाके ज़रा जला दे मस्जिद के वो दरवाजे 
रोके हुए हैं मुझको, संगदिल सी ये सलाखें 
ज़रा एक बार अपने दिल की पिला बनवारी 
तू बनके रहेगा बांके 
मेरे मन के मन का बिहारी 

एक बार जो तू मुझको दिल से पिला दे साक़ी 
जहाँ बुतकदे में  मुल्ला, और मस्ज़िद में हो पुजारी 

एक ठौर में हो दुनिया अल्लाह की राम प्यारी 
जब आब-ए -ज़म ज़म पे हो मय का नशा ही भारी