Wednesday, December 11, 2013

जाना अगर



जाना अगर
दूर कभी मुझसे
वक़्त को इत्तेला किये जाना
मुझे कहीं न ले जाए
तुम्हारे लौट आने तक
थम जाए
मेरी उम्र ख़त्म होने तक

मेरा वजूद



मेरी खाँसी
और तुम्हारा मुझे याद करना
कब धुएँ के हर कश के साथ
दोहरे होने लगे
जैसे तुम्हारे ख़तों का आना
उँगलियों में उँगलियों का होना
या हाथों में सिमट जाना हाथ
मेरा वजूद पिघल पिघल के
गंगा के पानी सा
सिर्फ हाथ में सिमटा...
जो तुम्हारी हथेली के नीचे
पर
सूंस सा पलटता - उफनता
मेरे वजूद को
अब बस खाँसी आने पर
पता चलता है कि
तुम्हारे याद करने में ही
बस कुछ बाकी है...