और फिर एक दौर चला
ख़ाली ख़तों (SMSs, e-mails) का
शायद मज़मून जानती थी
एक तरफ़ा ख़ाली ख़त थे
और उधर से बोलती आँखें
जो सिर्फ बन्द आँखों को सुनाई देती थी
हमेशा सुनने की कोशिश में
आँखें मींचे पड़ा रहता
मुर्दों सा
मगर ज़िन्दा
धड़कता हुआ
मगर ख़ाली
ख़ाली ख़तों (SMSs, e-mails) का
शायद मज़मून जानती थी
एक तरफ़ा ख़ाली ख़त थे
और उधर से बोलती आँखें
जो सिर्फ बन्द आँखों को सुनाई देती थी
हमेशा सुनने की कोशिश में
आँखें मींचे पड़ा रहता
मुर्दों सा
मगर ज़िन्दा
धड़कता हुआ
मगर ख़ाली
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