तुम्हें सिद्ध करना चाहता था
पाईथागोरस प्रमेय की तरह
लिखना चाहता था
इति सिद्धम्
पर गणित की तरह "क" का मान
कुछ भी मान लेने की सहूलियत से बचना चाहता था
बचना चाहता था
त्रिज्यामिति से
लेकिन हर यात्रा एक वृत्त सी हो गई है
शुरू करके वहीं पहुँच जाता हूँ
जहाँ शुरू किया था
केन्द्र बस नहीं मिलता इस वृत्त का
नहीं तो टू पाई आर अबतक याद है मुझे
कुछ बीजगणित के दक्ष लोग पूछते हैं
की मायने बताओ अंकों के
तुम कोई अंक तो हो नहीं
जो स्थानीय मान निकाल लूँ
सिद्ध न करने सोच रहा हूँ
कुछ ऐसा भी तो हो
जिसका हल न निकलना ही
उसका फल हो
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