जब गुन गुनी धुप आने लगती है हर सुबह -
याद आती है धुएं से भरी गाँव की सरहद
सब कुछ ढका, छुपा सा
परिचित सा अपरिचित
एक दम नए सा वो सब जो था पुराना
मजीरों और झाल के रंग में रंगा
अपने पन से पगा
हुक्के का धुंआ
कौड़े का ताप
देता था दस्तक, एक मौसम त्योहारों का
न बिजली के लट्टू
ना टेप रेकॉर्डर का शोर
ना डी जे की सर्विस
ना टैलेंट शो का जोर
बैलों की घंटियों से झरता संगीत था
पैकेज्ड ड्रिंकिंग वाटर का कोई ना ठौर था
हर उम्र के पास अपना एक रंग था
पूर्ण था
उन्मत्त था
जीवन था
तरक्की हमने इतनी कर ली कि
आज
ह़र मोड़ पर
दिखता है
अधूरापन तमाम
9 comments:
सही लिखा है आपने|
बहुत ही सुन्दर रचना है.बधाई....इसी तरह लिखते रहिये...
nice.narayan narayan
बहुत अच्छे
तरक्की हमने इतनी कर ली कि
आज
ह़र मोड़ पर
दिखता है
अधूरापन तमाम
sahi kaha
इस सुंदर नए से चिट्ठे के साथ आपका हिंदी ब्लॉग जगत में स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
हौसला अफज़ाई का शुक्रिया...
very good one....very well said....congrats for gr8 writing...:-)
U need to get all this published! It is almost criminal to keep the rest of the world away from such great creations. Not everyone in our part of the world can access net.
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