रंगों से पगे रसीले गाल
क्या फिर मिलेंगे मेरे होठों से अगले साल
रंग की भंग में, या भंग के रंग में
किसने डाला सच्चिदानंद का बवाल
बाबा की बूटी सर चढ़ कर बोली
अबके बरस होली में
जियेगा तू जवानी के सौ साल
चिर कुंवारा मन (तन तो कब से नहीं है - कुंवारा)
बुनने लगा है चाल
कैसे होली मचाएगा गोपाल
बच ना सकेगा एक भी भाल
जब उड़ेगा भर मन गुलाल
ऐसा रंग होगा कमाल
रंग देगा हर एक मलाल
भाल
कपाल
और
छूटेगा नहीं
तन छूट जाए भले ही इस साल
1 comment:
good..though li'l crude..but i like one thing..shuddh hindi ka prayog..keep up the good work!
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