Sunday, May 15, 2011

रंग

रंगों से पगे रसीले गाल
क्या फिर मिलेंगे मेरे होठों से अगले साल
 रंग की भंग में, या भंग के रंग में
किसने डाला सच्चिदानंद का बवाल
बाबा की बूटी सर चढ़ कर बोली
अबके बरस होली में
जियेगा तू जवानी के सौ साल
 
चिर कुंवारा मन (तन तो कब से नहीं है - कुंवारा)
बुनने लगा है चाल
कैसे होली मचाएगा गोपाल
बच ना सकेगा एक भी भाल
जब उड़ेगा भर मन गुलाल
ऐसा रंग होगा कमाल
रंग देगा हर एक मलाल
भाल
कपाल
और
छूटेगा नहीं
तन छूट जाए भले ही इस साल

1 comment:

Shalini said...

good..though li'l crude..but i like one thing..shuddh hindi ka prayog..keep up the good work!