Wednesday, September 21, 2011

तरक्की - भाग दो

अब जब के पैर छूना
घुटनों तक आ गया है
सलाम - सैल्यूट में बदल गया है
 
दुनिया की सबसे बड़ी आबादी
भूखों और नंगों की
हमारे घर का हिस्सा है
 
हम विकास की गाड़ी में
हाई स्पीड पेट्रोल डलवा कर
तेज रफ़्तार जिंदगी के मजे ले रहे हैं
 
दादी के ज़माने का कानून
एक मुट्ठी अनाज हर रोज़ पकाने से पहले हर रोज़ बचाने का दस्तूर
खो गया है पिज्ज़ा की खुशबु में
 
अब घुटने छिलने पे हम वो मिट्टी नहीं लगाते
जिसके स्वाद को हमारा बचपन आज तक नहीं भुला है
अब नए ज़माने के वाइरस हमें मजबूर करते हैं
 
बच के रहने के ढंग सिखाते हैं
ये कब बन गए हमारे आस पास
ये रहस्य अद्वैत वाद के सिद्धांत से  भी गूढ़ है
 
अब ठहाके असभ्यता की निशानी है
मुंह में राम बगल में छूरी 
इस कॉर्पोरेट संस्कार के हम अभिमानी हैं
 
जुल्म तो ये है की
जो मच्छर एक ज़माने में आवाज़ कर के काटते थे
उन्होंने ने भी तौर बदल दिया
वो मर्दों वाली बात बंद कर दी है
(आवाज़ करके हमला करने आदत)
बदल दी है
 
आज कल चुप चाप आते हैं
आत्मघाती उग्रवादियों की तरह
और डाल जाते हैं हमारे खून में अविश्वास का जहर

2 comments:

sanjeet said...

this is the fact of ours life, but any way this was nice then the last. This is not compare but more "Hridaysparshi".

daljit said...

मैं संजीत से सहमत हूँ हृदयस्पर्शी .व्याख्या है वर्तमान स्तिथियों की..