Friday, November 19, 2021

"कर्ता- ने" "कर्म-को"



सालों पहले पारसाई जी को पढ़ा था, उनकी हर बात सच लगाती है। इतने दंगो को देखने और सम्बंधित रिपोर्टों को पढ़ने के बाद ये मालूम हुआ है की दंगों के मुख्य कारण (हिंदी व्याकरण के हिसाब से, आपने "कर्ता- ने" "कर्म-को" वाला सूत्र तो याद किया ही होगा) लगभग निश्चित हो जाता है। नीचे कारन सूची लिखी है, पिछले साठ - सत्तर साल से ज्यों की त्यों है:

१ सभी धार्मिक स्थल
२ जानवर
३ इंसानी मादा
४ जमीन और जायदाद
५ धर्म
६ धंधा

अगर आप सूची को ध्यान से देखेंगे तो पाएंगे की सारी चीजें पुरुष के प्रभुत्व को स्थापित करने के लिए हैं। यह जानवरों में श्रेष्ठतम नर को समूह की सारी मादाओं से सम्भोग और समूह के चरने की सीमा क्षेत्र पर आधिपत्य ज़माने की निशानियों की तरह मात्र है।

जयराम रमेश जी ने पिछले कुछ समय में पाखाने के महत्व पर बहुत प्रकाश (करात नहीं) डाला। तब से इस सोच में डुबता उतराता फिरता हूँ कि पाखाना इन्सान के लिए इतना जरूरी है, फिर भी ऐसा क्यूँ है कि हाजत और पाखाने के मसले पर कभी कोई दंगा ना हुआ। परन्तु, अगर हो जाता तो शायद अखिल विश्व में पहली बार एक नैसर्गिक, स्वतःस्फूर्त विषय "कारण" बनता दंगे का, जिसे इंसान ने नहीं बनाया, (पाखाने की हाजत), जो उसके नियंत्रण के बाहर है।

अगर लोग इस मसले पर दंगों को करने की तैयारी करते तो कैसे बातें करते, एक मनगढ़ंत बानगी देखिये:

सांप्रदायिक व्यक्ति: “सुना है फलाने (धर्म का नाम अपनी रूचि के अनुसार लगा लें) लोग हाजत के समय भांग बूटी छानकर पीते हैं, और सटाक से फ़ारिग हो जाते हैं  

समाजवादी व्यक्ति:  “ इसी वजह से व्यापार को ध्यान में रख कर हमने तो आपके समाज में भांग बूटी के प्रयोग को अधरम से जुडवा दिया था
सेक्युलर व्यक्ति: "धरम के बीच में आ जाने से काला बाजारी हो तो रही है पर कुछ लोग अधार्मिक होते जा रहे हैं, वो खुद से भंग बूटी उगा रहे हैं  .”

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