हसरतें
मेरा शरीर
रहे ना रहे
हस्ती बनाती हैं
इनमें पैबस्त
उधेड़ बुन
सही ग़लत
ग़लत सही की
मेरे मिटने ...
और
बने रहने की
हदें तय करती हैं
हसरतें
शरीर
एक या अलग
मैं और मेरा होना
एक या अलग
क्या ग़लत की सही से
पहचान है अलग
मेरी आँखें
क्यूँ गुम हैं, अन्धेरों में
उजाले देखती हुई
एक पाक - स्याह कशिश से
चिपकी हुई
धड़कनें
हसरतें
उफान
आनन्द
अपराधबोध
की ज़मीन पर
फिर से गिर जाने के लिये
तैयार
अनवरत
मेरा शरीर
रहे ना रहे
हस्ती बनाती हैं
इनमें पैबस्त
उधेड़ बुन
सही ग़लत
ग़लत सही की
मेरे मिटने ...
और
बने रहने की
हदें तय करती हैं
हसरतें
शरीर
एक या अलग
मैं और मेरा होना
एक या अलग
क्या ग़लत की सही से
पहचान है अलग
मेरी आँखें
क्यूँ गुम हैं, अन्धेरों में
उजाले देखती हुई
एक पाक - स्याह कशिश से
चिपकी हुई
धड़कनें
हसरतें
उफान
आनन्द
अपराधबोध
की ज़मीन पर
फिर से गिर जाने के लिये
तैयार
अनवरत
No comments:
Post a Comment