Tuesday, January 26, 2016

नुस्खा



उसकी ज़ुबान एक पंखे से
झूल गई
उसकी आवाज़ को न सुनने वाले
जात ज़रूर समझते हैं
रंग से पहचानते हैं
धर्म के राज्य में
उसे जूतियों में रखते हैं
इन जूतियों में
पुश्तों के बेगार की चमक है
जेठ की धूप
माघ का जाड़ा है
और मकई के भात भर की भूख
त्योहार के कपड़ों भर की लाज
अपने पैरों के निशान मिटाने वाली पवित्रता
और वो सबकुछ भी जिसने
उनका रंग बदल दिया/जात नहीं
उसे इन्सान बनाये रखने के लिये
किफ़ायती, ईश्वरीय दिव्यता से युक्त
वैदिक नुस्खा

1 comment:

विभा रानी श्रीवास्तव said...

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 19 मार्च 2016 को लिंक की जाएगी ....
http://halchalwith5links.blogspot.in
पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!