पर क्या होगा आदम वल्द खुदा का जब दिल में बस गयी सिर्फ धूल ही धूल है
हर एक मूंछ के बाल से, तहज़ीब की तलवार से, ताज्ज़ुर्बे की झुर्रियों से
जवानी के बल से, मतवाली की मुस्कान से, रत जग्गों के शोर से,
चहुँ दिस झरती जाती है
रोके से ना रुक पाती है
जाने किस मुए की जवानी है, जिसमें बचा नहीं थोड़ा भी पानी है
क्या बताऊँ भाई अब मिलते नहीं यहाँ मस्ती के फूल हैं
तभी तो इतनी मस्त बारिश के बाद भी पत्तियों पर धूल है
पुरन्दर का भी हौसला पस्त है
क्यूंकि घनघोर वृष्टि में भी कीचड़ साला पेड़ के ऊपर मस्त है
4 comments:
likho to kuch aisa ki awaj padne wale ki rooh taak utre, aur sirji aise hi likhte raho.....
Great great sirji....
superb bro.......................
Gud going Om...!!!
Keep this going.........:) :)
ye sabse acchee hai!!!
great!!!
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