Tuesday, November 2, 2010

बादल - हमारे आकाश पर आ कर टंगेंगे

क्या कभी बादल हमारे आकाश पर भी आ टंगेंगे 
या की ऊसर भाग्य रेखा देख कर ही भाग लेंगे |
फटेंगे सिर्फ ऐसे ही दिलों पर जो हमेशा कोंपलों जैसे हरे हैं
छोड़ देंगे सम्भावना के हर बीज को वो
जो पेड़ बन जाने की ताकत लिए
आशा भरी एक नींद में बस सो रहे हैं
तसव्वुर में कि
बादल - हमारे आकाश पर आ कर टंगेंगे
एक दिन हम भी बड़ा सा पेड़ होंगे
 
क्या संवेदना के मरुस्थल में भगीरथ फिर ना होंगे
जो सीख लेंगे सुप्त, दलित बीजों  कि महत्ता
सहोदर को सहोदर सा उचित सम्मान देंगे
मेहनत के पसीनों कि उफनती धार से
अपने ह्रदय से गर्व कि काई काट देंगे
 
लगी है आस मन में अब भी
कि हम नायब होंगे
मनु कि संहिता में भी कुदरती भाव होंगे
हाँ, हमारे आस पास सिर्फ इंसान होंगे

4 comments:

abhishek said...

वो लाठियां टूटती हैं
मेरे नीम - ख्वाबों में
वो सूद जिसको चुकाना
है मुश्किल
दर्द के पैबंद मानिंद
जड़ें हैं मेरे तन - बदन पे
ये लाठियों के लाल धब्बे
जो मालिए के बहाने गिरें हैं
और तुम्हारे हाथो में
झरके गुलनार हो गयें हैं ....

Shweta Upadhyay said...

awesum piece.....
gt to knw dat u wrote dis poem while on ur way from home to offyc.............
must say.....u hav d spark .....

Great ...great ....great.
Keep going

Kaushik said...

Till now I have heard many kavitayein and shayris but unka andaz humesha kisi aur shayri ya kavita se milti ya prerit hoti hai....
Your's are d one which always gives me a different feelings and thoughts... which is very new to me.
And something which is new always attracts. Keep going Sir.

Isha Pant said...

baadal aakash mein tangenge aur baarish bhi laayenge. Sote beejon mein paani andar tak pahochne mein shayad thoda samay lage par pahochega aur woh harit vriksh banega..

Jiju u r awesome!