Sunday, August 28, 2011

स्वर्ग और नर्क

स्वर्ग
सभ्य समाज का स्वप्न,
नर्क
पातकी का जीवन
सभ्यता की शर्त
ब्रह्म
धर्म
संयम
जीवन
आचार, व्यवहार, समाज में शाख़
नियमों की सांस में ढल कर
सच्चाई के मुखौटों में छुपकर
रोज़ सही किये जाते हैं हमारे मनवंतर
 २५० साल की गुलामी जीकर
आज भी डर में जी कर
एक स्वर्ग की आस पीकर
गुलामी की मौत के बाद भी
हम जीते हैं वो ही ख़्वाब, खुद से लड़कर
जो दलित नहीं हैं
कोमल इच्छाओं से जनित नहीं हैं
क्यूंकि नियमों से हुए जो दूर
स्वर्ग से स्खलित हो जाते हैं हुजूर
 
पातकी हर रोज़ नर्क में मदमस्त है
क्यूंकि पहले की ही तरह यहाँ नियम कानूनों ध्वस्त हैं
इसकी श्रेणी को और नीचे गिराया नहीं जा सकता
क्यूंकि लोकतंत्र की सीधी में कुछ बाकी नहीं बचता

1 comment:

Niraj said...

Nice one...
maine kafi dino bad dekha ye...