सालों तक ये पूछ पूछ कर
हमने सबको तड़पाया था
की रात क्यूँ काली
दिन क्यूँ गोरा
आस्मां में बादल क्यूँ हैं
चाँद हमारा मामा क्यूँ है
हर मतवाली मौसी क्यूँ है
हर खूसट अब बुआ जी क्यूँ है
हर मंगल पर दंगल क्यूँ है
दंगल ही का मंगल क्यूँ है
दनवा दूत का मानस की बू से
तगड़ा वाला झोल ये क्यूँ है
हर सुन्दर सी बाला का एक
मोटा तगड़ा भाई क्यूँ है
साइकिल की हर एक तिल्ली का
मेरे वेग से रिश्ता क्यूँ है
गइया के पञ्च गव्य का
पूजा प्रसाद में भोग ही क्यूँ है
अब
बीस साल बाद
ये सारे क्यूँ छूट गए पीछे
अब एक आता है
बार बार
प्यार की बात
मन से सरक कर
हर बार तन पे अटकती क्यूँ है
हर मतलब की डोर सुनहली
तुम पर आकर रुकती क्यूँ है
तेरी सोच बड़ी अलबेली
बिस्तर पर ही सोती क्यूँ है
हमने सबको तड़पाया था
की रात क्यूँ काली
दिन क्यूँ गोरा
आस्मां में बादल क्यूँ हैं
चाँद हमारा मामा क्यूँ है
हर मतवाली मौसी क्यूँ है
हर खूसट अब बुआ जी क्यूँ है
हर मंगल पर दंगल क्यूँ है
दंगल ही का मंगल क्यूँ है
दनवा दूत का मानस की बू से
तगड़ा वाला झोल ये क्यूँ है
हर सुन्दर सी बाला का एक
मोटा तगड़ा भाई क्यूँ है
साइकिल की हर एक तिल्ली का
मेरे वेग से रिश्ता क्यूँ है
गइया के पञ्च गव्य का
पूजा प्रसाद में भोग ही क्यूँ है
अब
बीस साल बाद
ये सारे क्यूँ छूट गए पीछे
अब एक आता है
बार बार
प्यार की बात
मन से सरक कर
हर बार तन पे अटकती क्यूँ है
हर मतलब की डोर सुनहली
तुम पर आकर रुकती क्यूँ है
तेरी सोच बड़ी अलबेली
बिस्तर पर ही सोती क्यूँ है
4 comments:
इतनी साधारण से दिखने वाले शब्द क्यूँ पर इतनी सुन्दर मनभावन कविता लिखने के लिए ॐ जी हम आपके आभारी हैं ..मुझे तो ये बेहद पसंद आयी..
"प्यार की बात
मन से सरक कर
हर बार तन पे अटकती क्यूँ है"
बहुत ही उम्दा सर जी !
भगवान आपकी लेखनी की स्याही को बरक्कत दें I
Superb esp the depiction of love ... Platonic vs physical . Mind blowing!
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