Tuesday, January 26, 2016

गणतन्त्र



गणतन्त्र की दहलीज़
चमकते पत्थरों की
जिस पर
भूख की परछाईं भी थर थराती है
रक्त अपना रंग खो देता है

बचपन तिरंगे बेचकर
भविष्य रफ़ू करता है

और मुश्ताक़ अली अंसारी ६ दिसम्बर १९९२ से
मुस्लिम मुहल्ले की गलियों से बचकर निकलते हैं
क्या करें वो
पूरे हिन्दू लगते हैं
भूख
ख़ून
इन्सानियत को थर्रा देने वाली
गणतन्त्र की दहलीज़
बिछ जाती है
धर्म के आगे

7 comments:

kuldeep thakur said...

आपने लिखा...
और हमने पढ़ा...
हम चाहते हैं कि इसे सभी पढ़ें...
इस लिये आप की रचना...
दिनांक 27/01/2016 को...
पांच लिंकों का आनंद पर लिंक की जा रही है...
आप भी आयीेगा...

Om Abhay Narayan Rai said...

Shukriya Kuldeep ji, I have a few more poems up on today. Appreciate your kind words

Dr ajay yadav said...

सुंदर रचना|

कविता रावत said...

बहुत बढ़िया रचना
आपको जन्मदिन की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं!

Om Abhay Narayan Rai said...

शुक्रिया कविता जी
आशीर्वाद और स्नेह बनाये रखें

कविता रावत said...

आपको जन्मदिन के साथ ही गुड़ी पड़वा- चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की हार्दिक शुभकामनाएं

Om Abhay Narayan Rai said...

धन्यवाद कविता जी| गाँव गया हुआ था इसलिए समय से देख नहीं पाया था| क्षमा कीजियेगा